''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका

        

मेरे लेख

 सौंदर्य के साथ संवारें भाग्य को (रूप चतुर्दशी)
मित्रों सर्वप्रथम आप सभी को रूपचौदस की ढ़ेर सारी शुभकामनायें, प्रबुद्ध प्रिय पाठकों , कहा जाता है कि शरीर की सुंदर छवि का होना उतना ही आवश्यक है जितना मनुष्य के जीवन निर्वाह में धन की । अतएव इन दोनों अहम वस्तुओं का परस्पर में अनुनाश्रय संबंध है यानी एक के बिना दूसरा अधूरा तो आईए ''ज्योतिष का सूर्य'' के माध्यम से आज आपको इन दोनों अमूल्य पदार्थों को आसानी से एक दिन में ही प्राप्त करने का कुछ विशेष उपाय और गूढ़ रहस्य बताने जा रहा हुं मुझे विश्वास है कि आप जरूर लाभ उठायेंगे...
अवश्यमेव कर्तव्यं स्नानं नरकभीरूणा।। 
पक्षे प्रत्युषसमये स्नानं कुर्यात्प्रयत्नत:।

तैले लक्ष्मी: जले गंगा दीपावल्या चतुर्दशी।
प्रात: स्नानं तु य: कुर्यात् यमलोकं न पश्यति।।

भावार्थ- रूप चतुर्दशी के दिन तेल में लक्ष्मी का वास और जल में गंगा की पवित्रता होती है। इस शुभावसर पर दीप के प्रकाश में जो व्यक्तिप्रात:काल स्नान करता है, वह स्वरूपवान होता है तथा उसके जीवन की परेशानियां दूर होती हैं।

आज रूप चतुर्दशी है। इसे छोटी दिवाली और नरक चौदस भी कहा जाता है। आज के दिन का महत्व स्वच्छता से है।

आज क्या करें : सूर्योदय से पहले उठकर तेल-उबटन से नहाएं। शाम को तिल्ली के तेल के 14 दीपक थाली में सजाएं। फिर हाथ में जल लेकर उन्हें मंदिर में लगाएं।

पौराणिक महत्व :
भगवान वामन ने राजा बलि की पृथ्वी तथा शरीर को तीन पगों में इसी दिन नाप लिया था। हनुमानजी का जन्म भी आज ही हुआ था।

आज के ही दिन श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था।
कार्तिक माह के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. नरक चतुर्दशी को नरक चौदस, रुप चौदस, रूप चतुर्दशी, नर्क चतुर्दशी या नरका पूजा के नाम से भी जानते हैं. मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन मुख्य रूप से मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है
नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहा जाता है. दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात दीपक प्रज्जवलित किए जाते हैं. नरक चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा उपासना की जाती है. इस रात्रि के पूजन एवं दीप जलाने की प्रथा के संदर्भ में पौराणिक कथाएं तथा कुछ लोक मान्यताएं प्रचलित हैं जो इस पर्व के महत्व को परिलक्षित हैं.
नरक चतुर्दशी पर्व से जुड़ीं कुछ कथाएं
नरक चतुर्दशी के पर्व के साथ अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार रन्ति देव नामक एक राजा हुए थे. वह बहुत ही पुण्यात्मा और धर्मात्मा पुरूष थे सदैव धर्म कर्म के कार्यों में लगे रहते थे. जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उन्हें लेने के लिए आते हैं. और राजा को नरक में ले जाने के लिए आगे बढते हैं.

यमदूतों को देख कर राजा आश्चर्य चकित हो उनसे पूछते हैं कि मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझे नर्क में क्यों भेज रहे हैं. कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताएं जिस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा है. राजा की करूणा भरी वाणी सुनकर यमदूत उनसे कहते हैं कि, हे राजन एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा ही लौट गया जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है.

यह सुनकर राजा यमदूतों से विनती करते हुए कहते हैं कि वह उसे एक वर्ष का और समय देने की कृपा करें. राजा का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगते हैं और राजा की आयु एक वर्ष बढा़ देते हैं. यमदूतों के जाने पर राजा इस समस्या के निदान के लिए ऋषियों के पास जाता हैं, उन्हें सारा वृतान्त सुनाता है.

ऋषि राजा से कहते हैं कि यदि राजन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें. ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें तो वह इस पाप से मुक्त हो सकते हैं. ऋषियों के कथन अनुसार राजा कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करता है और इस प्रकार राजा पाप मुक्त हो कर विष्णु लोक में स्थान पाता है. तभी से पापों एवं नर्क से मुक्ति हेतु कार्तिक चतुर्दशी व्रत प्रचलित है.

एक अन्य कथा अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके, देवताओं व ऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी. इसके साथ ही साथ श्री कृष्ण भगवान ने सोलह हजार कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त करवाया था. इस उपलक्ष पर नगर वासियों ने नगर को दीपों से प्रकाशित किया और उत्सव मनाया तभी से नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाने लगा.
रूप चतुर्दशी
नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं. रूप चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए ऎसा करने से रूप सौंदर्य की प्राप्ति होती है. रूप चतुर्दशी से संबंधित एक कथा भी प्रचलित है मान्यता है कि प्राचीन समय पहले हिरण्यगर्भ नामक राज्य में एक योगी रहा करते थे. एक बार योगीराज ने प्रभु को पाने की इच्छा से समाधि धारण करने का प्रयास किया. अपनी इस तपस्या के दौरान उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पडा़. उनकी देह पर कीड़े पड़ गए, बालों, रोओं और भौंहों पर जुएँ पैदा हो गई.

अपनी इतनी विभत्स दशा के कारण वह बहुत दुखी होते हैं. तभी विचरण करते हुए नारद जी उन योगी राज जी के पास आते हैं और उन योगीराज से उनके दुख का कारण पूछते हैं. योगीराज उनसे कहते हैं कि, हे मुनिवर मैं प्रभु को पाने के लिए उनकी भक्ति में लीन रहा परंतु मुझे इस कारण अनेक कष्ट हुए हैं ऎसा क्यों हुआ? योगी के करूणा भरे वचन सुनकर नारदजी उनसे कहते हैं, हे योगीराज तुमने मार्ग तो उचित अपनाया किंतु देह आचार का पालन नहीं जान पाए इस कारण तुम्हारी यह दशा हुई है.

नारद जी के कथन को सुन, योगीराज उनसे देह आचार के विषय में पूछते हैं इस पर नारदजी उन्हें कहते हैं कि सर्वप्रथम आप कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर भगवान की पूजा अराधना करें क्योंकि ऎसा करने से आपका शरीर पुन: पहले जैसा स्वस्थ और रूपवान हो जाएगा. तब आप मेरे द्वारा बताए गए देह आचार को कर सकेंगे. नारद जी के वचन सुन योगीराज ने वैसा ही किया और उस व्रत के फलस्वरूप उनका शरीर पहले जैसा स्वस्थ एवं सुंदर हो गया. अत: तभी से इस चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाने लगा.

नरक चतुर्दशी पूजा । छोटी दिवाली पूजा विधि

नरक चतुर्दशी के दिन सुबह के समय आटा, तेल और हल्दी को मिलाकर उबटन तैयार किया जाता है. इस उबटन को शरीर पर लगाकर, अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियों को जल में डालकर स्नान करते हैं. इस दिन विशेष पूजा की जाती है जो इस प्रकार होती है, सर्वप्रथम एक थाल को सजाकर उसमें एक चौमुख दिया जलाते हैं तथा सोलह छोटे दीप और जलाएं तत्पश्चात रोली खीर, गुड़, अबीर, गुलाल, तथा फूल इत्यादि से ईष्ट देव की पूजा करें. इसके बाद अपने कार्य स्थान की पूजा करें. पूजा के बाद सभी दीयों को घर के अलग अलग स्थानों पर रख दें तथा गणेश एवं लक्ष्मी के आगे धूप दीप जलाएं. इसके पश्चात संध्या समय दीपदान करते हैं जो यम देवता, यमराज के लिए किया जाता है. विधि-विधान से पूजा करने पर व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो प्रभु को पाता है
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे-०९८२७१९८८२८, भिलाई, दुर्ग( छ ग.)




जन्मशताब्दि महायज्ञ बना मौत यज्ञ, स्वाहा के जगह आह, कराह था गूंजामान
हरिद्वार में गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की जन्मशती के आयोजन में मची भगदड़ यह बताती है कि सुरक्षा के इंतजामों को सरकार ही नहीं, हम सब भी बहुत गंभीरता से नहीं लेते। भगदड़ की वजह यह थी कि आयोजन स्थल पर पहुंचने के लिए बना एक द्वार टूटकर गिर गया। जाहिर है, आयोजकों और राज्य सरकार ने इस बात का कोई सटीक आकलन नहीं किया था कि इस द्वार से कितने लोग घुसेंगे और क्या बल्लियों जैसी चीजों से बना द्वार इतने बड़े हुजूम का दबाव सह पाएगा। अक्सर बड़े धार्मिक आयोजनों में भगदड़ की खबरें आती रहती हैं। कुछ वक्त पहले केरल के एक मंदिर की राह में भी भगदड़ की वजह से कई जानें गई थीं। हरिद्वार में भी पिछले कुंभ स्नान के मौके पर एक पुल पर भगदड़ से कुछ लोग मारे गए थे। गौरतलब है कि इतिहास में हमें भगदड़ से मरने के जिक्र लगभग नहीं मिलते। उसकी एक वजह तो यह रही होगी कि तब जनसंख्या कम थी और मंदिरों या धार्मिक आयोजनों में पहुंचना इतना कठिन था कि इतनी बड़ी भीड़ हो ही नहीं पाती थी। अब परिवहन व संचार साधनों की सुगमता की वजह से ऐसे धार्मिक स्थानों पर लाखों की तादाद में लोग पहुंच जाते हैं, जहां जाने के लिए पचास-सौ बरस पहले पचास बार सोचना पड़ता था। लेकिल अब भी धार्मिक स्थानों की सुविधाएं और इंतजाम उसी जमाने के हैं और वहां भीड़ बढ़ती जा रही है। इन आयोजनों में होने वाली भीड़ एक आधुनिक घटना है, इसलिए सुरक्षा के इंतजामात भी पुराने जमाने के नहीं रह सकते, उन्हें भी आधुनिक बनाना होगा। लाखों लोग अगर हरिद्वार जैसे शहर  में इकट्ठे होते हैं, तो उनका इंतजाम सिर्फ अंदाज से नहीं होगा, उसे निहायत वैज्ञानिक ढंग से आखिरी बिंदु तक तय करना होगा। हमारे यहां असंख्य लोग ऐसी घटनाओं में मरते हैं, जिन्हें जरा-सी सावधानी और दूरंदेशी से बचाया जा सकता है। तीन दिन बाद ही हरिद्वार में गंगा मेला होना है। उसके पहले ऐसी घटना का होना प्रशासन की तैयारी की पोल खोल देता है।
गायत्री परिवार के सदस्यों के लिए यह आयोजन एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है और उसमें परिवार के सभी सदस्य हिस्सा लेना चाहते होंगे, लेकिन एक ही आयोजन में इतने सारे लोगों का पहुंचना भी आयोजकों और प्रशासन के लिए एक मुश्किल है। कुछ वक्त पहले तक राजनीतिक कार्यक्रमों में भी भीड़ जुटती थी, लेकिन अब ऐसा कम ही होता है। टेलीविजन और दूसरे प्रचार-प्रसार के साधनों ने प्रत्यक्ष राजनीतिक कार्यक्रमों को काफी हद तक अप्रासंगिक बना दिया है। यूं भी आम तौर पर राजनीतिक रैलियों में ऐसी भदगड़ नहीं होती, क्योंकि शायद उनमें शामिल होने वाले लोग इतने श्रद्धावान नहीं होते कि किसी एक वक्त किसी एक छोटी-सी जगह पहुंचने के लिए जान की बाजी लगा दें। जैसे-जैसे सामूहिकता के अन्य अवसर कम हो रहे हैं, धार्मिक आयोजनों या स्थलों में भीड़ बढ़ने लगी है। जिन मंदिरों में कुछ वर्ष पहले दर्शन करना आसान होता था, अब उन्हीं मंदिरों में लंबी लाइनें लगाकर दर्शन करने में घंटों लग जाते हैं। नए-नए धार्मिक संप्रदायों के भी लाखों अनुयायी हैं और उनमें उत्साह पुराने संप्रदायों के अनुयायियों से ज्यादा है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि नए संप्रदाय अपने अनुयायी को ज्यादा निजी संपर्क और सामूहिकता की भावना देते हैं, जो आधुनिक समाज में दुर्लभ हो गई है। इसलिए ऐसी दुर्घटनाओं के बावजूद श्रद्धालुओं के उत्साह में कमी नहीं आएगी व लाखों लोग धार्मिक आयोजनों में पहुंचेंगे। आयोजकों का कर्तव्य है कि सुरक्षा को वे महत्वपूर्ण मानें और किसी श्रद्धालु के लिए अपनी श्रद्धा की कीमत जान से न चुकानी पड़े।
विश्व प्रसिद्ध शांतिकुंज आश्रम के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के जन्मशती समारोह की भव्यता पर कुप्रबंधन ने चंद मिनटों में पानी फेर दिया। हादसा स्थल में तब्दील कर दिया। देखते ही देखते लाखों चेहरों से खुशी के भाव निराशा में बदल गए। स्वाहा की गूंज आह में तब्दील हो गई। यह सबकुछ अचानक नहीं हुआ। लालजीवाला [हरिद्वार] स्थित पूरी तरह ढके यज्ञमंडप के 1551 कुंडों में जब एक साथ अग्नि प्रज्ज्वलित हुई तो वहां धुआं घिरने लगा। नतीजतन साधकों को घुटन होने लगी। ऐसे में उन्होंने यज्ञमंडप से बाहर निकलने में ही बेहतरी समझी। प्रवेशद्वार पर सिर पर काला पटका बांधे लट्ठधारी स्वयंसेवक तैनात थे।
प्रवेशद्वार के बाहर भी हजारों गायत्री साधक आहुति डालने के लिए भीतर घुसने को आतुर थे। भीड़ से दोनों तरफ के गायत्री साधक गुत्थमगुत्था हो गए और फिर..भगदड़। कितने मरे, ठीक-ठीक किसी को मालूम नहीं। प्रशासन 16 के मरने की पुष्टि कर रहा है, गायत्री परिवार के कार्यकर्ता 22 की, जबकि कई लोगों को उनके परिजनों के शव ही नहीं मिल रहे। लोगों ने यज्ञमंडप में अपने हाथों से शव गायत्री परिवार की एंबुलेंस में रखे थे। वह खुद भी एंबुलेंस से जाना चाहते थे, लेकिन उन्हें स्वयंसेवकों ने धक्के मारकर उतार दिया। घटना को छुपाने तक की साजिश होने लगी। रोते-बिलखते परिजन इधर-उधर मारे फिरते रहे, लेकिन उन्हें शवों तक नहीं पहुंचने दिया गया।

यज्ञशाला ढकना हुआ जानलेवा
डीआईजी संजय गुंज्याल ने करीब ढाई बजे मौके का जायजा लिया। उन्होंने कहा कि लोगों के दम घुटने का कारण यज्ञशाला का ढका होना था। इसी वजह से भगदड़ मची।

मिडिया  को गुमराह करते रहे प्रवक्ता
इसी को कहते हैं, 'एक तो चोरी, उस पर सीना जोरी'। सड़क के एक तरफ अस्थायी अस्पताल के दो टैंटों में गायत्री साधकों के 16 शव पड़े थे और दूसरी तरह मीडिया सेंटर में शांतिकुंज के इएमडी हेड दिव्येश व्यास दावा कर रहे थे सिर्फ पांच गायत्री साधक मारे गए हैं। वह पत्रकारों को यह नसीहत देने की कोशिश कर रहे थे कि मामले को तूल न दें। यह कोई हादसा नहीं, बल्कि सारी घटना दम घुटने के कारण हुई।
बेटा, हरिद्वार में मुझे कुछ हो जाए तो मेरा अंतिम संस्कार वहीं कर देना 
स्व.इन्द्रावती शुक्ल,
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य की जन्म शताब्दी के दौरान हुई भगदड़ में जान गंवाने वाले लोगों में भरारी बिलासपुर की इंद्रादेवी शुक्ला और भिलाई कोहका निवासी गोमती देवि भी शामिल हैं। जबकि इंद्रावती शुक्ला हादसे से पहले वाली शाम को ही अपने बड़े लड़के प्रदीप व छोटे बेटे प्रणय से उनकी बातचीत हुई थी, जो खुद भी जन्म शताब्दी समारोह में शामिल होने के लिए हरिद्वार गए हुए हैं
 धनतेरस के दिन दो महिलाओं के साथ वे हरिद्वार रवाना हुयीं थीं। हरिद्वार जाने के पहले उन्होंने हरिद्वार में मुझे कुछ हो जाए तो मेरा अंतिम संस्कार वहीं करने की बात उन्होंने अपने परिजनों से अपनी वही मंशा जाहिर की थी ।
भिलाई कोहका की गोमती भी सदा के लिए स्वः हो गई
स्व.गोमती देवी 


वहीं कोहका भिलाई से 25 से तीस लोगों एक जत्था भी इस कार्यक्रम में शामिल होने हरिद्वार पहुंचे थे । इन्हीं श्रद्धालुओं में से एक थीं गोमती देवि जिनका इस हादसे में मौत हो गया । ज्ञात हो कि गोमती देवि अपने पति रामपदारथ शर्मा के साथ वहां गयीं हुयीं थी। ९ नवंबर२०११ को ज्योतिष का सूर्य संवाददाता ने रामपदारथ शर्मा से फोन पर बात कि तो वे स्व.गोमती देवि के अस्थी को लेकर शांतिकुंज अंतिम संस्कार के लिए पहुंच चुके थे।, उन्होंने बताया कि ८ नवंबर २०११ को करीब १०  बजे हम लोग यज्ञमंडप के बाहर ही थे अभी हवनकुंड तक पहुंच भी नहीं थे, कि अचानक भीड़ में अफरा-तफरी हो गया हम लोग संभल पाते कि लोगों की भींड़ ने रौंदना चालू कर दिया और उसी वक्त (हादसे में मृत मेरी पत्नि) गोमती का एक पैर पंडाल में बने अलग अलग डिवाईडर में फंस गया और वह निचे गिर पड़ी भींड़ उसके उपर से गुजरने लगी मैं बहुत चीखा चिल्लाया पर मेरा वहां सुनने वाला कौन था। अंततः गोमती मौके पर ही दम तोड़ दी । कोहका के इस जत्था में शामिल अमरेन्द्र शर्मा (गुड्डु) ने बताया कि अभी तो हमलोग यज्ञमंडप के बाहर ही थे तो अचानक मची इस भगदड़ ने करीब करीब कई एकड़ में फैले इस आयोजन को अपने आगोस में ले लिया, और एक के उपर एक सभी श्रद्धालु परस्पर में गिरते चले गये , जो सबसे निचे गिरा वह दम तोड़ दिये जिनकी संख्या अभी बता पाना मुश्किल है,
जाने वाले थे वैष्णों देवि दर्शन के लिए होनी को कुछ और ही मंजूर था
अमरेन्द्र शर्मा ने कहा कि बताया कि होनी बलवान होती है क्योंकि भिलाई के इस जत्थे में शामिल जीतनारायण यादव, काशीनाथ, राजेश्वरी देवि, शिवबालक राय, त्रिभुवन साहू, सुरेश चौहान,, पारस नाथ, गोविन्द लोधी, सुरेश मुखरैय्या, हिमांचल श्रीवास आदि अन्य १5 लोगों का ही रिजर्वेशन हुआ था बाद में रामपदारथ शर्मा ने कहा मैं भी हरिद्वार चलुंगा तो बाद में उनका और उनके पत्नी स्व.गोमती देवि का टिकीट कराया गया, जो ८ तारीख को इस शताब्दि समारोह में शामिल होने बाद दूसरे दिन ९ नवंबर २०११ सभी लोगों को वैष्णों देवि दर्शन के लिए यहीं से ट्रेन पकड़ना था लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था, ठिक ही कहा गया समय होत बलवान.।